गरीबी किसी भी देश के लिए अभिशाप है यह सर्वमान्य है परन्तु यह भी सत्य है की इसके उन्मूलन के लिए बहोत सी नौकरियों का सर्जनभी होता है चाहे वो सर्कार से हो या प्राइवेट छेत्र की बड़ी- बड़ी मिशनरी या चेरिटी वाले ट्रस्ट और NGO चलाने वाले हों । यदि गरीबी हट गई तो बहुत से लोग बेरोजगार हो जायेंगे और ये तमाम ट्रस्ट ,NGO बंद हो जायेंगे अतएव कोई मिशनरी ,या संस्था ये नहीं चाहेगी की ये सब बंद हों इसीलिए ये कभी नहीं चाहेंगे कीगरीबी ख़त्म हो । भारत में गरीबी का मूल कारन है जनसँख्या की बढ़ोतरी जिसे लोग ईश्वर की देन मानते हैं। यूरोप के देश इसे शहीद महाद्वीप मानते हैं
गरीबी पूंजी और श्रम से उत्पादित उत्पाद के विक्रय से हासिल मुनाफे के असामान्य वितरण से प्राप्त अतिरिक्त लाभ की पैदाइश है। जिससे ये पूंजीपति कभी समझोता नहीं करेंगे।
Monday, August 29, 2011
Sunday, August 7, 2011
पूंजीवाद बनाम समाजवाद
पूंजीवादी परवर्ती ने पूंजीवादी देस अमेरिका एवं यूरोप को आर्थिक रूप से दिवालिया बना दिया। जंहापूंजीवाद होगा वहां उत्पादन तो बढेगा परन्तु उसे खपाने के लिए बाजार नहीं होगा । क्योंकि पूँजी का निर्माण श्रमिक के श्रम औरपूँजी लगाने वाले व्यक्ति के बीच मुनाफे का असामान्य वितरण से हुवा है ।और पूंजीपति ने श्रम के अनुपात में अधिक धन इकठा करलिया। और उस धन से उसने अधिक उत्पादन कीचाह में नई मशीने खरीद कर श्रमिक को अलग कर दिया। अब मशीन के द्वारा उत्पादित उत्पाद को खरीदने वाला नहीं रहेगा तो वह उत्पाद बिकेगा कहाँ । और इसी जगह पूँजी रूपी चैन का टूटना शुरू होता है । यही कारन है की पूंजीवाद यहीं धराशाही हो गया । समाज को ध्यान में रख कर यदि पूँजीपति ओर श्रमिक के बीच उत्पादन के लाभ का बराबर वितरण होता तो न तो पूंजीपति दिवालिया होता ओर न श्रमिक बेरोजगार होता। सामाजिक उत्थान में समय जरूर लगता है परंतू तर्रकी दोनों की होती और देश का विकास भी। आज की इस्थ्ती में इस श्रमिक की मजदूरी और पूंजीपति के अतिरिक्त लाभ ने समाज में असामान्य इस्थ्ती का निर्माण कर दिया जिससे अराजकता और अंतकवाद ने जन्म ले लिया। इससे न तो पूंजीपति बच सकता है और न ही आम नागरिक। इस अतिरिक्त लाभ ने भौतिक वादी परवर्ती को जन्म दिया कुछ लोगों की हब्श बड गई जिसकी पूर्ती के लिए आचरण खोया ,विवेक खोया और अंत में सयंम भी खोया। एक तरफ उच्च कोटि के समाज का निर्माण हुवा और दूसरी तरफ दुर्भिक्ष , साधन हीन समाज का। दोनों के बीच अंतर इतना ज्यादा है की दोनों का मिलाप ही असंभव प्रतीत होता है। दुनिया दो वर्गों में बँट गई है और अंतर इतना ज्यादा है के दोनों का मिलाप असंभव प्रतीत होता है दुनिया दो वर्गों में बँट गई एक शासक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग। जब तक अमीर , आदमी गरीब के घर तक नहीं पहुंचेगा , समतामूलक समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
Thursday, July 21, 2011
भ्रस्ताचार पर अंकुश
भ्रस्ताचार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को चाहिए जो भी व्यक्ति या महिला शासकीय कार्य में भागीदार है या जनसेवक जिनको शासन की ओर से किसी भी तरह की आर्थिक सहायता या अनुदान या मेहनताना मिलता है, उन सब की उनके joining के समय की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर लिया जाये, तथा सेवा मुक्ति के समय की आर्थिक स्थति का आंकलन करके , उसमे से सेवा कार्य दरमियान हांसिल की गई sallary अनुदान, मेहनताना या सहायता राशी को घटा कर जो भी अधिक पाया जाये उसे जप्त किया जाये तथा जिनके पास कम हो उन्हेँ जप्त
राशी में से सहायता दी जाये । तभी समाज में धन संचय की भावना पर अंकुश लगेगा , यही अंकुश भ्रस्ताचार को ख़त्म करेगा नहीं तो हवलदार के पास ८ करोड़ , चपरासी के पास २ करोड़, मंत्री के पास १७६ करोड़ आईएस दंपत्ति के पास ३५० करोड़ जे इ के पास १०करोड़ कहाँ से आगये । समाज में धन संचय के प्रति भावना असुरक्षित जीवन को सुरक्षित धन के माध्यम से करने की परवर्ती शासन की कार्य प्रणाली पर प्रश्नचिंह लगाती है।
राशी में से सहायता दी जाये । तभी समाज में धन संचय की भावना पर अंकुश लगेगा , यही अंकुश भ्रस्ताचार को ख़त्म करेगा नहीं तो हवलदार के पास ८ करोड़ , चपरासी के पास २ करोड़, मंत्री के पास १७६ करोड़ आईएस दंपत्ति के पास ३५० करोड़ जे इ के पास १०करोड़ कहाँ से आगये । समाज में धन संचय के प्रति भावना असुरक्षित जीवन को सुरक्षित धन के माध्यम से करने की परवर्ती शासन की कार्य प्रणाली पर प्रश्नचिंह लगाती है।
Saturday, April 2, 2011
Thursday, March 24, 2011
bhudani jhola: तीन वर्गों में जनता का बटवारा
bhudani jhola: तीन वर्गों में जनता का बटवारा: "में समझता हूं क़ि देश पर राज करने वालों ने सोची समझी रणनिटीके तहत देश क़ी जनता का तीन वर्गों में विभाजन कर दिया है। पहला १०%तबका वह है जो ..."
Tuesday, March 22, 2011
पानी का व्यापर
हवा और पानी कुदरत की नेमत है इन्सान के लिए इसका भी अगर व्यापर होने लगे तो इससे अनेतिक कार्य क्या हो सकता है नदी पहाड़ जंगल ये प्रकृति के द्वारा दिया गया एक उपहार है पृथवीके प्राणी मात्र केलिए । मध्यप्रदेश की सरकार पानी का निजी करण करने जारही है , बिजली का पहले ही निजीकरण कर चुकी है अब पानी का क्या हवा का भी निजीकरण कर सकेगी? जनता दल united isaka विरोध करेगा
जनता को जागृत करने के लिए ब्लॉग और फसबूक के जरिये आन्दोलन छेड़ेगा
जनता को जागृत करने के लिए ब्लॉग और फसबूक के जरिये आन्दोलन छेड़ेगा
Subscribe to:
Posts (Atom)