Monday, August 29, 2011

गरीबी

गरीबी किसी भी देश के लिए अभिशाप है यह सर्वमान्य है परन्तु यह भी सत्य है की इसके उन्मूलन के लिए बहोत सी नौकरियों का सर्जनभी होता है चाहे वो सर्कार से हो या प्राइवेट छेत्र की बड़ी- बड़ी मिशनरी या चेरिटी वाले ट्रस्ट और NGO चलाने वाले हों । यदि गरीबी हट गई तो बहुत से लोग बेरोजगार हो जायेंगे और ये तमाम ट्रस्ट ,NGO बंद हो जायेंगे अतएव कोई मिशनरी ,या संस्था ये नहीं चाहेगी की ये सब बंद हों इसीलिए ये कभी नहीं चाहेंगे कीगरीबी ख़त्म हो । भारत में गरीबी का मूल कारन है जनसँख्या की बढ़ोतरी जिसे लोग ईश्वर की देन मानते हैं। यूरोप के देश इसे शहीद महाद्वीप मानते हैं
गरीबी पूंजी और श्रम से उत्पादित उत्पाद के विक्रय से हासिल मुनाफे के असामान्य वितरण से प्राप्त अतिरिक्त लाभ की पैदाइश है। जिससे ये पूंजीपति कभी समझोता नहीं करेंगे।

Sunday, August 7, 2011

पूंजीवाद बनाम समाजवाद

पूंजीवादी परवर्ती ने पूंजीवादी देस अमेरिका एवं यूरोप को आर्थिक रूप से दिवालिया बना दिया। जंहापूंजीवाद होगा वहां उत्पादन तो बढेगा परन्तु उसे खपाने के लिए बाजार नहीं होगा । क्योंकि पूँजी का निर्माण श्रमिक के श्रम औरपूँजी लगाने वाले व्यक्ति के बीच मुनाफे का असामान्य वितरण से हुवा है ।और पूंजीपति ने श्रम के अनुपात में अधिक धन इकठा करलिया। और उस धन से उसने अधिक उत्पादन कीचाह में नई मशीने खरीद कर श्रमिक को अलग कर दिया। अब मशीन के द्वारा उत्पादित उत्पाद को खरीदने वाला नहीं रहेगा तो वह उत्पाद बिकेगा कहाँ । और इसी जगह पूँजी रूपी चैन का टूटना शुरू होता है । यही कारन है की पूंजीवाद यहीं धराशाही हो गया । समाज को ध्यान में रख कर यदि पूँजीपति ओर श्रमिक के बीच उत्पादन के लाभ का बराबर वितरण होता तो न तो पूंजीपति दिवालिया होता ओर न श्रमिक बेरोजगार होता। सामाजिक उत्थान में समय जरूर लगता है परंतू तर्रकी दोनों की होती और देश का विकास भी। आज की इस्थ्ती में इस श्रमिक की मजदूरी और पूंजीपति के अतिरिक्त लाभ ने समाज में असामान्य इस्थ्ती का निर्माण कर दिया जिससे अराजकता और अंतकवाद ने जन्म ले लिया। इससे न तो पूंजीपति बच सकता है और न ही आम नागरिक। इस अतिरिक्त लाभ ने भौतिक वादी परवर्ती को जन्म दिया कुछ लोगों की हब्श बड गई जिसकी पूर्ती के लिए आचरण खोया ,विवेक खोया और अंत में सयंम भी खोया। एक तरफ उच्च कोटि के समाज का निर्माण हुवा और दूसरी तरफ दुर्भिक्ष , साधन हीन समाज का। दोनों के बीच अंतर इतना ज्यादा है की दोनों का मिलाप ही असंभव प्रतीत होता है। दुनिया दो वर्गों में बँट गई है और अंतर इतना ज्यादा है के दोनों का मिलाप असंभव प्रतीत होता है दुनिया दो वर्गों में बँट गई एक शासक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग। जब तक अमीर , आदमी गरीब के घर तक नहीं पहुंचेगा , समतामूलक समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

Thursday, July 21, 2011

भ्रस्ताचार पर अंकुश

भ्रस्ताचार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को चाहिए जो भी व्यक्ति या महिला शासकीय कार्य में भागीदार है या जनसेवक जिनको शासन की ओर से किसी भी तरह की आर्थिक सहायता या अनुदान या मेहनताना मिलता है, उन सब की उनके joining के समय की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर लिया जाये, तथा सेवा मुक्ति के समय की आर्थिक स्थति का आंकलन करके , उसमे से सेवा कार्य दरमियान हांसिल की गई sallary अनुदान, मेहनताना या सहायता राशी को घटा कर जो भी अधिक पाया जाये उसे जप्त किया जाये तथा जिनके पास कम हो उन्हेँ जप्त
राशी में से सहायता दी जाये । तभी समाज में धन संचय की भावना पर अंकुश लगेगा , यही अंकुश भ्रस्ताचार को ख़त्म करेगा नहीं तो हवलदार के पास ८ करोड़ , चपरासी के पास २ करोड़, मंत्री के पास १७६ करोड़ आईएस दंपत्ति के पास ३५० करोड़ जे इ के पास १०करोड़ कहाँ से आगये । समाज में धन संचय के प्रति भावना असुरक्षित जीवन को सुरक्षित धन के माध्यम से करने की परवर्ती शासन की कार्य प्रणाली पर प्रश्नचिंह लगाती है।

Saturday, April 2, 2011

Thursday, March 24, 2011

bhudani jhola: तीन वर्गों में जनता का बटवारा

bhudani jhola: तीन वर्गों में जनता का बटवारा: "में समझता हूं क़ि देश पर राज करने वालों ने सोची समझी रणनिटीके तहत देश क़ी जनता का तीन वर्गों में विभाजन कर दिया है। पहला १०%तबका वह है जो ..."

bhudani jhola:

bhudani jhola:

Tuesday, March 22, 2011

पानी का व्यापर

हवा और पानी कुदरत की नेमत है इन्सान के लिए इसका भी अगर व्यापर होने लगे तो इससे अनेतिक कार्य क्या हो सकता है नदी पहाड़ जंगल ये प्रकृति के द्वारा दिया गया एक उपहार है पृथवीके प्राणी मात्र केलिए । मध्यप्रदेश की सरकार पानी का निजी करण करने जारही है , बिजली का पहले ही निजीकरण कर चुकी है अब पानी का क्या हवा का भी निजीकरण कर सकेगी? जनता दल united isaka विरोध करेगा

जनता को जागृत करने के लिए ब्लॉग और फसबूक के जरिये आन्दोलन छेड़ेगा

Saturday, February 19, 2011

ग्लोब्ल्य्जेशन


ग्लोब्ल्य्जेशन ने जहाँ इसदेश के पूंजीवादी व्यक्तियों और संस्थाओं को अपनी पूँजी बढ़ने में सहयोग किया वहीँ धर्म कट्टरपंथ को भी बढाया,खास कर हिन्दू कट्टरपंथ बढ़ाया। नए देवताओं ने अवतार ले लिया। इन पूंजीपतियों ने नव अवतरित देवताओं के प्रचार के लिए बढे बढे आयोजन करने शुरू कर दिए क्योंकि जरूरत से ज्यादा एकत्रित पूँजी से समुदाय या समूह में अपने आप को प्रचारित या स्थापित करने के लिए इन नव अवतरित देवताओं के नाम से विराट आयोजन की वयवस्था की जाती है।चूँकि इस प्रकार के लिए धन की आवशकता एक साधारण आदमी जो धर्मनिरपेक्ष है वह नहीं कर सकता। इसलिए इन नए धन कुबेरों ने ग्लोब्ल्य्जेशन के माधय्मसे कमाए गए अतिरिक्त धन को खपाने के लिए धर्म कट्टरपंथ का सहारा लेना शुरू कर दिया। जो किसी भी सभ्य dहर्म्निर्पक्ष समाज के लिए घातकहै। इस प्रकार के आयोजन किसी गरीब और अशिक्षित बहुसखंकवर्ग के एक दिन की भूख तो मिटा देगा लेकिन उसके दिमाग में किसी देवता के प्रति आस्था से उसके कर्त्व्यपरयानता की भावना को शिथिल कर देगा। जिससे यह वर्ग कम के प्रति उतनी रूचि नहीं दिखाता और दस्ता की ओर चला जाता है। जिसे ये पूंजीपति अपनी जरूरतों के लिए इसे भुनाते हैं। किसी व्यक्ति के स्वाभाविक कर्मशील स्वभाव को धर्म कट्टरपंथ कुंठित करता है जिससे मानव विकास कम होता है। और उससे राष्ट्र का विकास रुकता है।

Tuesday, February 15, 2011

नैतिकता

ढंग से जीने की वयवस्था का नाम ही है नैतिकता।
बिना बुधि ki naitikta anaitik se bhi badtar hoti hai
aur bina vayvktitv ki naitikta anaitik se bhi badtar hoti hai

Sunday, February 13, 2011

आधुनिकशिक्षा

आज उच्चस्तरीय शिक्षा ने जहाँ नव यूवकों को स्वयं को स्वाब्लाम्बित होने के योग्य बनाया तथा अंतररास्ट्रीय स्तर पर अपने आप को पहचानने लायक बनाया वहीँ इस शिक्षा ने भारतीय संगठित परिवार की अवधारणा को नकारने में सहयोग भी प्रदान किया। आज इस शिक्षा ने स्वयंवाद को स्थापित करने में सहायता की है , जिसने भारतीय पारिवारिक परंपरा छिन्न भिन्न कर दिया है। पुराणी पीढ़ी की परम्परावोंका अनुसरण करना ये बकवास मानते हैं। धीरे धीरे पश्चिम का अनुसरण करते हुए स्वयं के प्रति ही सोचते हैं न तो किसी पर आश्रित होते है और न ही किसी को आश्रित रखना चाहते हैं। ये अतीत को बेड़ियाँ समझतें हैं और परम्परावों को ढोंग। इन्हें वर्तमान अछालगता है और भविष्य के प्रति चिंतित नहीं हैं परंतु उसका मुकाबला करने के लायक समझतें हैं। ये संभव हो अच्छा लगता है। पर सच होगा इस पर शक है। क्योंकि पुराणी पीढ़ी ने अपने जीवन में बहोत उतार चढाव देखें हैं इसलिए वे इतनी मजबूती से नहीं कह सकते किभविष्य में क्या होगा। आज परिवार कि परिभाषा बदल गई है । अर्थात परिवार सीमित हो गया है। इससे समाज कि अवधारणा खत्महो रही है। जब समाज नहीं रहेगा तो जीवन जीने के जो कायदे बने थे उनमे भी परिवर्तन होगा। रिश्तों का स्थान ख़त्म होगा। और स्वार्थ नए रूप में स्थापित होगा बिना स्वार्थ के कोई किसी से परिचय नहीं बढ़ाएगा। और स्वार्थ की मात्र का निधारण उसका वयव्क्तितवकरेगा। अर्थात व्यक्ति प्रधान समाज का निर्माण होगा फिर इन नए व्यक्तियों का समूह एक नए समाज का निर्माण करेगा। जो पुराने से भिन्न होगा। उनके संस्कार आचरण पुरातन से भिन्न होगें।

Saturday, February 5, 2011

मिश्र में जन आन्दोलन

पिछले १२ दिनों से प्रेसिडेंट मुबारक को हटाने के लिए जो आन्दोलन वंहा की जनता ने छेड रखा है वो जनता का पिछले ३० सालों के कुसासन के खिलाफ दबा हुवा आक्रोश है। भारत में भी इस देश के राज्नेतावों ओर नौकरशाहों के खिलाफ आक्रोश भरा हुवा है कब चिंगारी भरक उठे कोई नहीं कह सकता परंतू ये होगा क्योंकि जनता वर्तमान वयवस्था से दुखी हो गई है महंगाई घूसखोरी देश का पैसा विदेशों में और बेरोजगारी की वजह से आम जनता के साथ होने वाले रोज मर्रा के लूट खसोट चोरी आदि की घटनावों से जनता निजात चाहती है। सरकारी महकमा कोई काम नहीं करता कोई ऑफिसर अपनी जवाबदारी नहीं समझ रहा जनता तड़प रही कोई सामने नहीं आरहा उनकी तख्लिफों को समझने वाला।

Tuesday, January 11, 2011

समाजवाद

समाजवाद लोगों को वर्गों में बांटता है याने गरीब समाज और अमीर समाज न क़ि वर्णों में वर्ण से साम्पर्दायिक भावनाएं उमड़ती हैं। समाजवाद शोषक और शोषित के फांसले को कम करता है, वो न तो मुस्लिम और हिन्दू न ही गरीब और अमीर के बीच झगडा करवाता है। उसकी लड़ाई तो गरीब और पिछड़ों के लिए ही है। जो शोषित वर्ग के द्वारा निर्मित है वो इस निर्माण को तोडना चाहता है। गरीब और अमीर के बीच क़ि खाई को मिटाने का संघर्ष ही समाजवाद है। सिर्फ समाजवादी चित ही साम्प्रदायिकता से मुक्ति का मार्ग है। अगर सम्प्रदाय टूटेगा तो वर्ण टूटेगा वर्ण टूटेगा तो जाति और जातियों के टूटने से जो समाज बनेगा वो इन्सान का होगा। जिससे इंसानियत जनम लेगी और इंसानियत से हबस कम होगी तो गरीबी और अमीरी का भेद कम होगा पूर्व में व्यक्ति समाज का अंग था। आज व्यक्तियों का जोड़ समाज है।