Saturday, February 19, 2011

ग्लोब्ल्य्जेशन


ग्लोब्ल्य्जेशन ने जहाँ इसदेश के पूंजीवादी व्यक्तियों और संस्थाओं को अपनी पूँजी बढ़ने में सहयोग किया वहीँ धर्म कट्टरपंथ को भी बढाया,खास कर हिन्दू कट्टरपंथ बढ़ाया। नए देवताओं ने अवतार ले लिया। इन पूंजीपतियों ने नव अवतरित देवताओं के प्रचार के लिए बढे बढे आयोजन करने शुरू कर दिए क्योंकि जरूरत से ज्यादा एकत्रित पूँजी से समुदाय या समूह में अपने आप को प्रचारित या स्थापित करने के लिए इन नव अवतरित देवताओं के नाम से विराट आयोजन की वयवस्था की जाती है।चूँकि इस प्रकार के लिए धन की आवशकता एक साधारण आदमी जो धर्मनिरपेक्ष है वह नहीं कर सकता। इसलिए इन नए धन कुबेरों ने ग्लोब्ल्य्जेशन के माधय्मसे कमाए गए अतिरिक्त धन को खपाने के लिए धर्म कट्टरपंथ का सहारा लेना शुरू कर दिया। जो किसी भी सभ्य dहर्म्निर्पक्ष समाज के लिए घातकहै। इस प्रकार के आयोजन किसी गरीब और अशिक्षित बहुसखंकवर्ग के एक दिन की भूख तो मिटा देगा लेकिन उसके दिमाग में किसी देवता के प्रति आस्था से उसके कर्त्व्यपरयानता की भावना को शिथिल कर देगा। जिससे यह वर्ग कम के प्रति उतनी रूचि नहीं दिखाता और दस्ता की ओर चला जाता है। जिसे ये पूंजीपति अपनी जरूरतों के लिए इसे भुनाते हैं। किसी व्यक्ति के स्वाभाविक कर्मशील स्वभाव को धर्म कट्टरपंथ कुंठित करता है जिससे मानव विकास कम होता है। और उससे राष्ट्र का विकास रुकता है।

Tuesday, February 15, 2011

नैतिकता

ढंग से जीने की वयवस्था का नाम ही है नैतिकता।
बिना बुधि ki naitikta anaitik se bhi badtar hoti hai
aur bina vayvktitv ki naitikta anaitik se bhi badtar hoti hai

Sunday, February 13, 2011

आधुनिकशिक्षा

आज उच्चस्तरीय शिक्षा ने जहाँ नव यूवकों को स्वयं को स्वाब्लाम्बित होने के योग्य बनाया तथा अंतररास्ट्रीय स्तर पर अपने आप को पहचानने लायक बनाया वहीँ इस शिक्षा ने भारतीय संगठित परिवार की अवधारणा को नकारने में सहयोग भी प्रदान किया। आज इस शिक्षा ने स्वयंवाद को स्थापित करने में सहायता की है , जिसने भारतीय पारिवारिक परंपरा छिन्न भिन्न कर दिया है। पुराणी पीढ़ी की परम्परावोंका अनुसरण करना ये बकवास मानते हैं। धीरे धीरे पश्चिम का अनुसरण करते हुए स्वयं के प्रति ही सोचते हैं न तो किसी पर आश्रित होते है और न ही किसी को आश्रित रखना चाहते हैं। ये अतीत को बेड़ियाँ समझतें हैं और परम्परावों को ढोंग। इन्हें वर्तमान अछालगता है और भविष्य के प्रति चिंतित नहीं हैं परंतु उसका मुकाबला करने के लायक समझतें हैं। ये संभव हो अच्छा लगता है। पर सच होगा इस पर शक है। क्योंकि पुराणी पीढ़ी ने अपने जीवन में बहोत उतार चढाव देखें हैं इसलिए वे इतनी मजबूती से नहीं कह सकते किभविष्य में क्या होगा। आज परिवार कि परिभाषा बदल गई है । अर्थात परिवार सीमित हो गया है। इससे समाज कि अवधारणा खत्महो रही है। जब समाज नहीं रहेगा तो जीवन जीने के जो कायदे बने थे उनमे भी परिवर्तन होगा। रिश्तों का स्थान ख़त्म होगा। और स्वार्थ नए रूप में स्थापित होगा बिना स्वार्थ के कोई किसी से परिचय नहीं बढ़ाएगा। और स्वार्थ की मात्र का निधारण उसका वयव्क्तितवकरेगा। अर्थात व्यक्ति प्रधान समाज का निर्माण होगा फिर इन नए व्यक्तियों का समूह एक नए समाज का निर्माण करेगा। जो पुराने से भिन्न होगा। उनके संस्कार आचरण पुरातन से भिन्न होगें।

Saturday, February 5, 2011

मिश्र में जन आन्दोलन

पिछले १२ दिनों से प्रेसिडेंट मुबारक को हटाने के लिए जो आन्दोलन वंहा की जनता ने छेड रखा है वो जनता का पिछले ३० सालों के कुसासन के खिलाफ दबा हुवा आक्रोश है। भारत में भी इस देश के राज्नेतावों ओर नौकरशाहों के खिलाफ आक्रोश भरा हुवा है कब चिंगारी भरक उठे कोई नहीं कह सकता परंतू ये होगा क्योंकि जनता वर्तमान वयवस्था से दुखी हो गई है महंगाई घूसखोरी देश का पैसा विदेशों में और बेरोजगारी की वजह से आम जनता के साथ होने वाले रोज मर्रा के लूट खसोट चोरी आदि की घटनावों से जनता निजात चाहती है। सरकारी महकमा कोई काम नहीं करता कोई ऑफिसर अपनी जवाबदारी नहीं समझ रहा जनता तड़प रही कोई सामने नहीं आरहा उनकी तख्लिफों को समझने वाला।