Sunday, June 6, 2010

VYAVASTHA

भारत के नौजवान साथियों को क्रन्तिकारी सलाम अपना परिचय देने के पहले ये बतादूँ की यह ब्लॉग मेरे जीवन का पहला और पहली विदेश यात्रा के दौरान मोंट्रेअल से लिख रहा हूँ । मोंत्रेअल में कुदरत की नेमत है मौसम सुहावना है यंहा के लोग सुसंस्कृत, अनुशासित हैं । भारत और पाकिस्तान, चाइना के लोग भी बहुतायत में रहते हैं बहुतायत में चायनीस रहते हैं अपने देशों में ये क्यों नहीं रहते ,अफ़सोस हुवा इसका अर्थ मैंने ये निकला की हमारे यंहा कानून का पालन सरकार की तरफ से कड़ाई से नहीं करवाया जाता। यंहा के लोगों में देश की भावना ज्यादा है हमारे यहाँ इसकी निहायत कमी है उसके पीछे सामाजिक संघटन का छोटे छोटे हिस्सों मैं स्थापित है ,जिसका निराकरण राजनेतावो और नौकरशाहो के हाथ मैं हैं।
मैंने देखा किवेस्टर्न कंट्री उन्ही लोगों को अपने देश मैं आने देती है जो उच्च शिक्षाधारीएंड विशेषकार्यकुशालता के धनी तथा संपन्न वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं । यदि ये सब लोग भारत से निकल कर अपने धन ज्ञान एवम कार्यकुशलता का परदर्शन इन देशों में करेंगे एवम यंहा कि वयवस्था मैं अपने आपको ढल लेंगे तो भारत कि लचर वयवस्था को कौन संभालेगा । देश मैं वयवस्था परिवर्तन लाने वाले कुशल शिक्षित वर्ग विदेशी कम्पनियों मैं उनके आर्थिक ढांचे को मजबूत करेंगे तो देश तो कमजोर होगा ही साथ मैं उन्हें भी दुसरे दर्जे का नागरिक माना जाएगाiसलिए मैं नवजवान साथियों को इस ब्लॉग के माध्यम से आगाह करता हूँ कि भले ही हमारे यंहा संसाधन कम हों फिर भी पर्यास करो कि अपने ज्ञान का कार्यकुशलता का पर्दशन देश मैं ही करके देश को साधन संपन्न बनावो । तभी इस देश कि अधोसर्चना बदलेगी । मैंने देखा कि जो भी भारतीय विदेश में बस गया वो वापस जाने को तैयार ही नहीं है क्योंकि वंहा वह अपनेआपको सुरक्षित महसूस नहीं करता कानून वयवस्था के कमजोर होने के कारन । वह अपना जीवन असुरक्षित होने के कारन जीवन सुनिश्चित नहीं समझता । असुरक्षित अनिश्चित व्यक्ति को पैसे कि भूख बढ़ जाती है ओर जयादा धन कमाने कि जुगत में अपने आचरण को खोने लगता है । आचरण इन्सान कि सबसे बड़ी पूँजी होती है । इतिहास गवाह है भारत का इतिहास आचरण के मामले में विश्व का पथपर्दर्शक था, नहीं तो क्या कारन था कि श्रीमती ऐनी विसेंट ने सन १८९३ से १९३३ तक भारत में बिताया । इतिहास तो ये भी कहता है कि ईसामसीह ने भी भारत से धर्म का ज्ञान लिया । बौध धर्म भी भारत से गया । स्वास्तिक निसान भी भारत से ही गया । विज्ञानं ओर धरम भारत से अरब ,अरब से यूनान ओर यूनान से यूरोप गया। संस्कृत से सभी भाषाएँ निकली । फिर हम पीछे क्यों रह गए , किसी देश का भविष्य उस देश कि यूवा पीढ़ी में होता इसलिए यूवाओं को आगे आकर इस देश कि बागडोर संभालनी पढ़ेगी । वर्तमान के राजनेताओं ओंर नौकरशाहों से सत्ता छीन कर अपने हाथो में लेनी होगी । तभी यह बौधिक पलायन रुक सकता है ।
ज्यादा से ज्यादा यूवाओं को जो आईआईएम आई आई टी कि पढाई कर रहे हैं उनको देश कि राजनीती में भाग लेना होगा । जनता के बीच जाना होगा वोट ले कर लोकसभा ,विधान सभा में जाना होगा तभी इस लचर वयवस्था में सुधार आपायेगा ।

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