Sunday, February 13, 2011

आधुनिकशिक्षा

आज उच्चस्तरीय शिक्षा ने जहाँ नव यूवकों को स्वयं को स्वाब्लाम्बित होने के योग्य बनाया तथा अंतररास्ट्रीय स्तर पर अपने आप को पहचानने लायक बनाया वहीँ इस शिक्षा ने भारतीय संगठित परिवार की अवधारणा को नकारने में सहयोग भी प्रदान किया। आज इस शिक्षा ने स्वयंवाद को स्थापित करने में सहायता की है , जिसने भारतीय पारिवारिक परंपरा छिन्न भिन्न कर दिया है। पुराणी पीढ़ी की परम्परावोंका अनुसरण करना ये बकवास मानते हैं। धीरे धीरे पश्चिम का अनुसरण करते हुए स्वयं के प्रति ही सोचते हैं न तो किसी पर आश्रित होते है और न ही किसी को आश्रित रखना चाहते हैं। ये अतीत को बेड़ियाँ समझतें हैं और परम्परावों को ढोंग। इन्हें वर्तमान अछालगता है और भविष्य के प्रति चिंतित नहीं हैं परंतु उसका मुकाबला करने के लायक समझतें हैं। ये संभव हो अच्छा लगता है। पर सच होगा इस पर शक है। क्योंकि पुराणी पीढ़ी ने अपने जीवन में बहोत उतार चढाव देखें हैं इसलिए वे इतनी मजबूती से नहीं कह सकते किभविष्य में क्या होगा। आज परिवार कि परिभाषा बदल गई है । अर्थात परिवार सीमित हो गया है। इससे समाज कि अवधारणा खत्महो रही है। जब समाज नहीं रहेगा तो जीवन जीने के जो कायदे बने थे उनमे भी परिवर्तन होगा। रिश्तों का स्थान ख़त्म होगा। और स्वार्थ नए रूप में स्थापित होगा बिना स्वार्थ के कोई किसी से परिचय नहीं बढ़ाएगा। और स्वार्थ की मात्र का निधारण उसका वयव्क्तितवकरेगा। अर्थात व्यक्ति प्रधान समाज का निर्माण होगा फिर इन नए व्यक्तियों का समूह एक नए समाज का निर्माण करेगा। जो पुराने से भिन्न होगा। उनके संस्कार आचरण पुरातन से भिन्न होगें।

4 comments:

  1. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  2. "ये अतीत को बेड़ियाँ समझतें हैं और परम्परावों को ढोंग। इन्हें वर्तमान अछालगता है और भविष्य के प्रति चिंतित नहीं हैं परंतु उसका मुकाबला करने के लायक समझतें हैं। ये संभव हो अच्छा लगता है। पर सच होगा इस पर शक है"

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