इस देश की आबोहवा को लोगों ने इतना गन्दा बना रखा है की जीवन सिर्फ जीने के लिए है चाहे कैसे भी जिया जाये। ये अवधारणा लेकर आदमी बेढंगे तरीके से जी रहा है।
पता नहीं इस देश के राजनेतावों, नौकरशाहों को क्या हो गया है। लाखो करोड़ों का घपला करने के बाद भी अपने आपको पाक साफ बताने का प्रयास करते हैं जिस देश में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हों, जवानी अराजक बन रही हो वहां इस धन का संचय किसलिए। संचय ओर संकुचन दोनों ही प्रगति के लिए अवरोधक होते हैं। धन का संचय ओर बुद्धि का संकुंचन उस समाज,व्यक्ति, ओर देश के लिए सबसे बड़े अवरोधक होते हैं। पश्चिम ने इसको पहचाना ओर कभी इस को स्वीकार नहीं किया। यही कारन है की वहां के लोग खुशहाल हैं। अनिश्चयी , ओर असुरक्षित इन्सान ही इस बीमारी का शिकार होता है । धन का संचय ओर बुद्धि का संकुचन एक बीमारी है इससे दूर रहना चाहिए । इन दोनों का फैलाव प्रगति का ज्योतक है। ये भावना इस देश के कर्णधारों को स्वीकार करके देश में फैलाना चाहिए यही मेरा सोच है ।
Friday, November 19, 2010
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