Sunday, August 7, 2011

पूंजीवाद बनाम समाजवाद

पूंजीवादी परवर्ती ने पूंजीवादी देस अमेरिका एवं यूरोप को आर्थिक रूप से दिवालिया बना दिया। जंहापूंजीवाद होगा वहां उत्पादन तो बढेगा परन्तु उसे खपाने के लिए बाजार नहीं होगा । क्योंकि पूँजी का निर्माण श्रमिक के श्रम औरपूँजी लगाने वाले व्यक्ति के बीच मुनाफे का असामान्य वितरण से हुवा है ।और पूंजीपति ने श्रम के अनुपात में अधिक धन इकठा करलिया। और उस धन से उसने अधिक उत्पादन कीचाह में नई मशीने खरीद कर श्रमिक को अलग कर दिया। अब मशीन के द्वारा उत्पादित उत्पाद को खरीदने वाला नहीं रहेगा तो वह उत्पाद बिकेगा कहाँ । और इसी जगह पूँजी रूपी चैन का टूटना शुरू होता है । यही कारन है की पूंजीवाद यहीं धराशाही हो गया । समाज को ध्यान में रख कर यदि पूँजीपति ओर श्रमिक के बीच उत्पादन के लाभ का बराबर वितरण होता तो न तो पूंजीपति दिवालिया होता ओर न श्रमिक बेरोजगार होता। सामाजिक उत्थान में समय जरूर लगता है परंतू तर्रकी दोनों की होती और देश का विकास भी। आज की इस्थ्ती में इस श्रमिक की मजदूरी और पूंजीपति के अतिरिक्त लाभ ने समाज में असामान्य इस्थ्ती का निर्माण कर दिया जिससे अराजकता और अंतकवाद ने जन्म ले लिया। इससे न तो पूंजीपति बच सकता है और न ही आम नागरिक। इस अतिरिक्त लाभ ने भौतिक वादी परवर्ती को जन्म दिया कुछ लोगों की हब्श बड गई जिसकी पूर्ती के लिए आचरण खोया ,विवेक खोया और अंत में सयंम भी खोया। एक तरफ उच्च कोटि के समाज का निर्माण हुवा और दूसरी तरफ दुर्भिक्ष , साधन हीन समाज का। दोनों के बीच अंतर इतना ज्यादा है की दोनों का मिलाप ही असंभव प्रतीत होता है। दुनिया दो वर्गों में बँट गई है और अंतर इतना ज्यादा है के दोनों का मिलाप असंभव प्रतीत होता है दुनिया दो वर्गों में बँट गई एक शासक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग। जब तक अमीर , आदमी गरीब के घर तक नहीं पहुंचेगा , समतामूलक समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

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